इस बार

 मैं और तुम
मानो रेल की दो पटरियां
चलते रहे हमेशा समांतर
मिले भी तो फिर राह बदल ली
और गुज़रती रहीं किसी रेल सी
हम पर यह परिस्थितियां
हर बार हम रहे प्रतीक्षा में
अगली रेल की !
किसी गंतव्य पर पहुँच कर
तुम रुकी भी अगर
न चाहते हुए भी रुक पाया मैं
दूसरे प्लेटफार्म पर
कितना विवश हो जाता था मैं जब
गुज़रती थी एक जैसी रेल हम दोनों पर
मैं और तुम
मिले जो अगली बार
राह बदलने की जगह
बन जायेंगे एक ही पटरी हम !!

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