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मेरा नाम

देखोगे तो मुझे भी अपने जैसा ही पाओगे, मगर मैं तुम्हारे जैसा नहीं हूँ। हाँ, मेरे दो हाथ, पाँव और आँखें हैं, पर मेरी इछाओं का केंद्र - मेरा दिल नहीं है। मेरी भावनाएं जो मेरी झोंपड़ी में शायद दफ़न हैं कहीं, चली आती हैं कभी कभी मेरे खोखले सीने में। कभी दुःख, कभी क्रोध, कभी लज्जा तो कभी हीनता। और ऐसा तब ज़रूर होता है जब सामने की कोठी से दूध में मलाई कम होने की आवाज़ आती है और माँ मेरे हाथ पर सूखी रोटी और नमक रखती है। हर रोज़ मेरे कदम उस ईमारत की तरफ बढ़ जाते हैं जहाँ हर रोज़ सेकड़ों बच्चे बस्ता टांगे कारों से उतरते हैं। पर जाने क्यों वह चौकीदार मुझे अन्दर नहीं जाने देता जहाँ विद्या सबका अधिकार है का नारा लगता है। मुझे वो चोकोलेट भी लुभाते हैं जो बच्चे खेलते हुए खाते हैं पर मेरा बापू उनके पापा की तरह चोकोलेट नहीं लाता है। वो तो खुद पी कर आता है। मुझे माँ पर भी बड़ा गुस्सा आता है जब वो मुझे एक ही पुरानी कमीज़ पहनने को देती है फिर माँ की फटी साड़ी देख कर चुप हो जाता हूँ और मुंह फेर कर रो लेता हूँ। जिस दिन सामने वाली कोठी से बेबी विदेश घुमने गयी थी मैं बहुत रोया था क्योंकि उसी दिन मेरी मुन्नी ब

तुम्हारी निशानी

कल रात एक किताब के पन्नो में, गुलाब की कुछ सूखी पंखुडियाँ मिल गयीं। दिल के टूटे हुए हज़ार टुकड़ों में से, मानो कोई चंद टुकड़े लौटा दे!

कब

अच्छा किया मौत जो मुझे सुला दिया, वर्ना शब् - ए - तन्हाई की सहर जाने कब होती। मैं गहराईयों में डूबता चला जाता, तैर पाने की उम्र जाने कब होती! ख्वाबों की जन्नत कितनी ख़ूबसूरत होती है, सचाइयों की जहनुम कितनी बेदर्द। अरमानो के महल टूटते चले जाते, मेरे छोटे से घर की मेहराब खड़ी जाने कब होती! डूबते सूरज में भी लम्बे होते सायों को, बचाने की ताक़त नहीं होती, हवा के थपेड़े मुझे झुकाते रहते, मेरी लौ तेज जाने कब होती! दिल की आरजुएं हज़ार थीं, किस किस को दबाकर रखता मैं। जज्बातों का समंदर उफनता रहता, यादों की लहरें आनी बंद जाने कब होती! अच्छा किया मौत जो मुझे सुला दिया , वर्ना शब् - ए - तन्हाई की सहर जाने कब होती।

तर्क

काठ की पुतलियाँ हैं, पर डोर नहीं है। इचछाँए तो हैं पर, तर्क नहीं है। समाजवाद में समाज को, बाद में लाया जाता है। स्वार्थ को आगे लाने का, वैसे कोई अर्थ नहीं है। मनुष्यता का बैरी जब, स्वयं मनुष्य हो जाये। और खून बेहने लगे, तो इससे बुरा कोई कृत्य नहीं है। लाशों की नींव पर बना साम्राज्य, कोई अर्थ नहीं रखता। यूँ साम्राज्य की भी, कोई आव्यशकता नहीं है। दुहाई देना हक और ज़रूरत क़ी, केवल बहाना है एक। किसी का हक छीनना, हमारी आदत नहीं है। ज़रूरत है अब क़ी सब, झांकें अपने गिरेबान में. किसी का भी दामन, कलंक से खाली नहीं है।

तुम्हारा आना

हर आहट पर चौंकता हूँ, हर थिरकन पर मुड़ता हूँ! क्यूंकि हर धड़कन पर है, इंतज़ार तुम्हारे आने का!! मेरे ही शरीर का एक टुकड़ा, मेरी आत्मा का नया चोला हो तुम! मेरी ज़िन्दगी में मेरा पुनर्जनम है, मतलब तुम्हारे आने का!! जब से साँसे चली हैं तुम्हारी, हर साँस मेरी महकी है! मेरे दिल पर तुम्हारी धडकनों ने लिख दिया है, सन्देश तुम्हारे आने का!! हंसी और खुशियों की बरात आयी है, जब से आयी है मेरी हमसफ़र मेरी ज़िन्दगी में! ख़ास तबसे जब हो गया है हमें है, यकीन तुम्हारे आने का!!

अँधेरा

दिल्लगी न समझ ऐ ज़माने इसको मैंने आशनाई की है अंधेरों से! आंच से दामन के जलने का खतरा है वहशत सी हो गयी है रौशनी से!! अंधेरों में रहने वाले अँधें नहीं होते! राहों पर चलते हैं वोह भी पर उन्हें प्यार होता है ठोकरों से!! दुनिया के रंग न दिखाओ मुझे अंधेरों में कोई रंग नहीं होता! चाहें कितना भी तेज़ रंग क्यों न हो सरे रंग हो जाते हैं बेरंग अँधेरे में!! दिन में मुखोटा पेहेननेवाले भी मुहँ छिपाते हैं रातों में! अँधेरे में सब छिप जाता है असलियत दिख जाती है चिरागों से!! बुझा दो सब चिरागों को छुपा लो मुझे अँधेरे के आँचल में! अगर मेरी आह न रुक सकी छुप सकेंगे मेरे आंसूं तो दुनिया जहाँ से!! आंच से दामन के जलने का खतरा है वहशत सी हो गयी है रौशनी से !!

सूखा पेड़

लगाया था जिस माली ने वोह भी, छोड़ गया इस दुनिया में अकेला मुझे! किस किस को मनाऊँ मैं, मुझसे तो ज़िन्दगी भी रूठी है!! कच्चे पौधे से तना बनने तक, साथ दिया है सिर्फ मिट्टी ने मेरा! वरना तो इस मतलबपरसत दुनियाँ में, लोगों की हमदर्दी भी झूठी है!! दोस्तों की बेवफाई, अपनों की बेरुखी क्या सुनाएँ! यहाँ तो ऐसे मौसम आये हैं, जब अपनी पत्तियों ने ड़ाल छोड़ी है!! जब भी लिया सहारा दूसरों का, अपनी ही मिट्टी ने झिंझोड़ा है मेरी जड़ों को! दूसरों का सहारा तो क्या मिलता, मेरी जड़ें ही हुई ढीली हैं!! अपनी किस्मत ही कुछ ऐसी है, तना काट देते तो चैन हो जाता! पर अच्छाई का नाम लेकर दुनियाँ ने, कभी यह तो कभी वो ड़ाल काटी है!! कहते हैं बरसात के आने से, कटी हुई ड़ाल फिर से बढ़ जाती है! किस्मत की मार तो देखिये, यहाँ तो बरसात में ही ड़ाल टूटी है!! जन्म से लेकर आज तक, कभी फला ही नहीं हूँ मैं! जब कभी फलना चाहा, किस्मत की मार पड़ी है!! सुखा पेड़ किसी काम का नहीं, बोझ होता है इस धरती पर! देखना तो अब यह है कि, मुझ पर बिजली कब गिरती है!!

शब्द और ख़ामोशी

जब भी करनी हुई कोई बात मैं खामोश ही रह गया! जब भी खामोश रहना चाहा दिल की परतें उतर गयीं!! होंठ फरफरा कर भी कुछ कह न सके! आंखें चुप रह करके भी बहुत कुछ बोल गयीं!! जो कहा वोह सुना नहीं जो सुना वोह कहा नहीं! इस कहने सुनने में शब्द खो गए ख़ामोशी दब गयी!! आँखों ने आँखों से कह दिया खामोश रहो शब्दों को डूबने दो! शब्द ख़ामोशी में तेरते रहे शब्दों की ख़ामोशी दिल में उतर गयी!! शब्दों और ख़ामोशी के बीच फासला कुछ इतना था कि शब्द और ख़ामोशी में मुझे कोई फर्क मालूम न हुआ!!

आप को

सुल्झऊंगा उलझी लटों को, कह रहा व्याकुल ये मन, क्यूँ सभी पागल हुए है, देखकर के आप को। अंतस की गहराईयों तक, कुञ्ज से वीरानियों तक, हर जगह हर राह पर, बस देखता हूँ आप को। थरथराते होटों पर तुम, होंठ रख दो फूल से, भोरों सा ही बस मगन मैं, पुजता हूँ आप को.