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Showing posts from May, 2014

कसक

गीली रेत पर लिखा वोह नाम, नरम दुधिया चांदनी से धुला धुला सफ़ेद सीप और छोटे छोटे कंकड़, एक छोटा सा नीला कांच का टुकड़ा! मैना जैसी वह चिड़िया और शाम की ठंडी हवा के मस्त झोंके गवाह अभी भी हैं मेरी बर्बादियों के गर तुम्हे याद न हो आज !! मेज़ पर आधा बिछा हुआ मेरा तौलिया और एक गुलाब फर्श पर गिरा तुम्हारा दुपट्टा और मेरा रुमाल! चादर की सलवटें और तकिये पर काजल का निशाँ झुटलाते हैं तुम्हारी बेवफाई चाहें कोई कुछ भी कहे आज !! मेरे दिल की ख्वाहिशें तुम्हारे अधूरे जज़्बात तुम्हारी नम आँखें और मेरे बाज़ुओं का हार! ज़माने की बंदिशें, रवायतें और तुम्हारा निकाह जज़्ब करके अपने आंसूं और ज़ख्म याद करता हूँ तुम्हें आज !! बेहद याद करता हूँ तुम्हें मैं आज !!!