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Showing posts from August, 2012

मेरा पहला प्यार

वोह थी मेरा पहला प्यार पहली बार आँखें उसे देखती ही रह गयीं होंठ कुछ कह न पाए पर मेरी नज़र भर गयी कितना अच्छा लगता था उसके गले लग कर चुमते ही गाल किलकारियां निकलती थी मेरे मुहं से अपने हाथों से उसने खिलाया कई बार हर दर्द को सहा बराबर मेरे साथ हर ख़ुशी में साथ थी वोह मेरे वोह थी मेरा पहला प्यार . आज जब वोह मेरे साथ नहीं है सीने से लगने की प्यास बड़ी है कहाँ से लाऊं वोह एहसास वोह मुस्कान मेरे आंसूं पोंछ ले ऐसे हाथ मेरी खुशिओं पर मुझे चूमे मेरी गलतियों पर टोके . हर प्यार से पहले वो ही थी मेरी हर  तदबीर में वो ही थी दे दे कोई मेरी माँ मुझे वापस ले ले मुझसे ज़माने की हर नियामत वोही थी तो थी मेरा पहला प्यार।

अब और तब

 कुछ इस तरह से बदलती है करवट  ज़िन्दगी जैसे चुपके से सर्द मौसम बदल जाये बहार में. क्या मालूम था हमें हमारी कश्ती भी यूँ टकरा जाएगी लहरों की दीवार से. कभी सोचा ना  था ऐसा होगा के आवारगी उन दिनों की बनेगी दीवानगी इन दिनों की. और तस्सुवर में होगा उनका कब्ज़ा जिन्हें हम लाते भी न थे ख्वाबों में. कोई शख्स क्यूँ आता है ज़िन्दगी में ऐसे लौट कर, आती है साहिल पे लहरें ज्यूँ  क्या इरादा है उस खुदा का हमारी इन मुलाकातों में. सुखा पेड एक बार फिर से हरा हो जाये बिन बरसात ऐसे सिर्फ पढ़ते थे अलिफ़ लैला की किताबों में. फर्क है---------- फर्क है लेकिन उन  दिनों की मुहब्बत और आज की इस चाहत में  तब सिर्फ चाह थी उसे पाने की और अपना बना कर रखने की. आज सिर्फ यह चाह है की वोह खुश रहे, आबाद रहे. तब जलन सी होती थी अपने रकीब से अब वही रकीब कुछ अपना सा लगने लगा है. ताजुब होता है मुझे अपने ही दिल की बेवफाई पे जो अपना न हुआ उसे गैरों का बना देखने पर भी क्यूँकर सुकून है इस में.  लोग कहते हैं हम अब समझदार हो गए हैं. सही गलत का फैसला करने का हक रखते हैं. पर मुहब्बत में क्या सही क्या गलत- क्या मेरा क

मेरी बेचैनी

उनसे बिछड के एक मुद्दत हुई  अब तो अनजाने लगते हैं वो रास्ते भी  ज़िन्दगी ने सब कुछ दिया हमें  उनसे ना मिल पाने की कसक भी। यूँ तो कोई शिकवा नहीं है अपने हालातों से  मिली मोहब्बत और कामयाबी भी  वोह दर्द पता नहीं क्यूँ होता है सीने में  जागते भी सोते हुए भी. कैसे हो कहाँ हो देखने की आरज़ू है बेपनाह  अपनी जान की शै पर भी  आंसूं रोक लेता हूँ दिल को समझा लेता हूँ यही सोच कर   कि मेरी तरह करार न हो जाये रुसवा तुम्हारा भी।   कभी कहीं किसी मोड़ पे ज़िन्दगी के सफ़र में  मिलो गर हम से भी  पहचान ज़रूर लेना ग़ैर्रों की इस भीड़ में  हमें भी हमारी वफ़ा भी। मेरे दोस्त जहाँ हो खुश तो हो न  सारी खुदाई  डालता है तुम्हारी झोली में मेरा रकीब भी  किसी तरह सूरत-ए -हाल  बता पाओ अपने तो  भर जाएँ दो जहाँ खुशिओं से मेरे भी।