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मेरी बेटियां

जब कभी मुझे अपनी माँ याद आती हैं  मैं अपनी बेटियों की गोद में सर रख लेता हूँ।  जब कभी यह दुनिया मुझे सताती है  मैं अपनी बेटियों से बात कर लेता हूँ।  जब कभी खुश होना चाहता हूँ   मैं अपनी बेटियों की तरफ देख लेता हूँ।  जब कभी अपनी कामयाबी बताना चाहूँ  मैं अपनी बेटियों का नाम पुकार लेता हूँ।  मेरी बेटियां - मेरा अभिमान - अंशिका और अलंकृता। 

जीवन के पचास साल

जीवन के पचास साल बीत जाने पर भी है लड़कपन मेरा जैसे का तैसा! नहाते हुए बनाता हूँ साबुन के झाग से दाढ़ी मूँछ बाल और बन जाता हूँ बूढ़ा बाबा जो था काबुल से आया। चलाता हूँ गले से आवाज़ निकाल कर मोटर कार ट्रेन और जहाज़ और खुद ही हँसते हुए गिर जाता हूँ ज़मीन पर। जवान बच्चों से करता हूँ बेसिरपैर की बातें, कभी तुकबंदी कभी पुराना गाना तो कभी यूँह ही कुछ अजब आवाज़ें। ख्यालों में अब भी देखता हूँ राजा रानी की कहानी का सुखद अंजाम, पर कहानी बनाता भी मैं हूँ और राजा भी मैं। नए नए सपने बुनता हूँ  हर रात और कभी डॉक्टर कभी पुलिस तो कभी बनता हूँ डाकुओं का सरदार। कंचे, पतंग, पिठू, गिल्ली-डंडा, लूडो और छुपन-छुपाई ललचाते हैं ज्यूँ खाली पेट को मिठाई की दूकान। छुप कर खा लेता हूँ अब भी बोर्नविटा या किशमिश गर न मिले दूध को उबाल कर राबड़ी खाने का मौका। करता हूँ कोशिश अप्रैल फूल बनाने की घर पर सबको कभी पट्टी बाँध कर तो कभी रोने की एक्टिंग कर के। टीवी पर ढूंढता हूँ कार्टून फिल्में या फिर गाने पुराने वीडियो गेम्स में सुपर मारिओ मिल जाएँ तो फिर क्या बात। रामलीला और दिवाली का मेला देखने ज़रूर जाता हूँ छो