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Showing posts from August, 2010

तर्क

काठ की पुतलियाँ हैं, पर डोर नहीं है। इचछाँए तो हैं पर, तर्क नहीं है। समाजवाद में समाज को, बाद में लाया जाता है। स्वार्थ को आगे लाने का, वैसे कोई अर्थ नहीं है। मनुष्यता का बैरी जब, स्वयं मनुष्य हो जाये। और खून बेहने लगे, तो इससे बुरा कोई कृत्य नहीं है। लाशों की नींव पर बना साम्राज्य, कोई अर्थ नहीं रखता। यूँ साम्राज्य की भी, कोई आव्यशकता नहीं है। दुहाई देना हक और ज़रूरत क़ी, केवल बहाना है एक। किसी का हक छीनना, हमारी आदत नहीं है। ज़रूरत है अब क़ी सब, झांकें अपने गिरेबान में. किसी का भी दामन, कलंक से खाली नहीं है।

तुम्हारा आना

हर आहट पर चौंकता हूँ, हर थिरकन पर मुड़ता हूँ! क्यूंकि हर धड़कन पर है, इंतज़ार तुम्हारे आने का!! मेरे ही शरीर का एक टुकड़ा, मेरी आत्मा का नया चोला हो तुम! मेरी ज़िन्दगी में मेरा पुनर्जनम है, मतलब तुम्हारे आने का!! जब से साँसे चली हैं तुम्हारी, हर साँस मेरी महकी है! मेरे दिल पर तुम्हारी धडकनों ने लिख दिया है, सन्देश तुम्हारे आने का!! हंसी और खुशियों की बरात आयी है, जब से आयी है मेरी हमसफ़र मेरी ज़िन्दगी में! ख़ास तबसे जब हो गया है हमें है, यकीन तुम्हारे आने का!!

अँधेरा

दिल्लगी न समझ ऐ ज़माने इसको मैंने आशनाई की है अंधेरों से! आंच से दामन के जलने का खतरा है वहशत सी हो गयी है रौशनी से!! अंधेरों में रहने वाले अँधें नहीं होते! राहों पर चलते हैं वोह भी पर उन्हें प्यार होता है ठोकरों से!! दुनिया के रंग न दिखाओ मुझे अंधेरों में कोई रंग नहीं होता! चाहें कितना भी तेज़ रंग क्यों न हो सरे रंग हो जाते हैं बेरंग अँधेरे में!! दिन में मुखोटा पेहेननेवाले भी मुहँ छिपाते हैं रातों में! अँधेरे में सब छिप जाता है असलियत दिख जाती है चिरागों से!! बुझा दो सब चिरागों को छुपा लो मुझे अँधेरे के आँचल में! अगर मेरी आह न रुक सकी छुप सकेंगे मेरे आंसूं तो दुनिया जहाँ से!! आंच से दामन के जलने का खतरा है वहशत सी हो गयी है रौशनी से !!