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कुछ यादें अधूरी सी

कुछ यादें अधूरी सी वोह गीले बालों की महक सौंधी बरसात की मिटटी सी आँखों पर काजल की लकीरें शाम के गहराते सायों सी रुक रुक कर आती साँसे बहती हवा की मानिंद सी आज फिर वोह समां है पर तुम नहीं कुछ यादें ताज़ा हैं सुबह के सपनो सी यहां मैं अधूरा सा वहां तुम अधूरी सी हमारी ज़िन्दगानी हमारी यादों सी कुछ कुछ अधूरी सी !