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Showing posts from February, 2013

कसम

इस दुनिया में बहुत नफरत और शुबहा-शिकायत है, हर किसी को हर किसी से कोई मतलब कोई उम्मीद है। न करेंगे कोई शिकवा न ही गिला रखेंगे कोई, जो मिला जितना  मिला  उतना जश्न ए इश्क मनायेंगे।। रकीब को मेरे मेरा सलाम कहना, मुझे नहीं चाहिए कुछ भी यह बता देना। रहो तुम खुश आबाद रहो दिल शाद रहो, एक मुस्कान मेरी तुम्हारे होंटों पे ज़रूर खिलाएंगे।। चलो आज फिर से कसम खाएं कि फिर कभी न कोई कसम खायेंगे, बस हम प्यार करेंगे न कि वादे और रस्मे निभाएंगे। चाहा है गर तुम्हे अपने दिल  ओ जान से मेरे सनम, तो अगले जनम ज़रूर एक दुसरे को हम पाएंगे।।

मेरा पैगाम

वाकिफ़ हूँ इज़हार -ए - तमन्ना की हर अदा से देख  मेरे  इश्क की गहराई मेरी निगाहों में। सूरत न दिखा भले ही मेरी ज़िन्दगी के मालिक भेज दे अपना तस्सुवर मेरे ख्वाबों में।। चाहा है तुम्हे इस कद्र दिल ओ जान से कुबूल कर लो मेरा पैगाम अपनी धडकनों में। मैंने तो मान लिया है तुम्हे अपना खुदा नाम सुनता हूँ  तुम्हारा आरती और अज़ान  में।। रुसवाई का डर है गर तुम्हे मेरी बातों  से न दो जवाब मेरी गुस्ताख बेबाकियों का। एक नज़र भर देख लेना मुस्कुरा कर मेरी तरफ जब निकले मेरा जनाज़ा तुम्हारी गलियों में।।