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कुछ ख़यालात

१ .  याद आते हैं मुझे वोह दिन, कैंटीन में बैठ कर, चाय के गिलास के पीछे से देखा किये थे तुम.  और चांदनी रात में खेंच कर अपनी ऊँगली से, मेरी हथेली पर अपना नाम लिखा किये थे तुम.  २. यह राख शोलों से ज्यादा गरम है इसमें मेरे प्यार की तपिश है जिस्म जल गए कई मोहब्बत की चाह में राख के ढेर पर ही ताजमहल बना है ३. चलो आज फिर एक गुनाह कर के देखते हैं हम आज फिर किसी को दिल में बसा के देखते हैं ज़ख़्म सारे भर गए दिल के  दोस्तों कुछ तो अब जीने के लिए नए ग़म ढुढ़ते हैं। ४ है कुछ बात उनमे जो भुला देती है मुझे हर बात उनके करीब आने से दिल की धड़कन भी कभी भूल जाती है मेरा साथ. ५. कुछ इस तरह से गुज़रती है अब यह ज़िन्दगी हमारी कुछ ऐसे ख्यालों में कि बंद आखें भी खुली लगती है हमारी हर पल साथ हैं हम तुम हर जगह है तस्वीर तुम्हारी ६. लब से लब मिलें तो गुज़ारिश है खुदा मेरे रोक देना वोह लम्हे कुछ देर के लिए तुम ही जानो जाने कब होगा वोह इतना करीब फिर से मेरे। ७. हर बार यह दिल अपनी धड़कन भूल जाता है कुछ मुस्कुराता है कुछ और उनके करीब आता है और अब तो हर वक़्त हमें उनसे प्यार हु