ज़िंदा हूँ मैं

क़त्ल हुआ है मेरा
पर मौत नहीं आयी
ख्यालों को मेरे कैसे
मार सकोगे तुम !

कहते कहते ज़बान मेरी
थकी नहीं है अभी
लफ़्ज़ों की ताकत को
कैसे दबा सकोगे तुम !

कर दो मुहं बंद मेरा
दबा दो मेरी चीखे भी
आँख से गिरते लहू को
कैसे रोक सकोगे तुम !

आँखे बंद हैं मेरी
दिल के दरवाज़े खुले हैं
इन रास्तों पर जज़्बातों का आना
कैसे बंद कर सकोगे तुम !

कर लिया है ग़मों से समझौता
दबा लिए हैं अरमान भी
दिल से निकलती आह को
कहाँ सुन सकोगे तुम !


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