शायद वोह आये हैं

फ़िज़ाओं में एक ताज़गी सी हैं
हवाओं में एक खुशबू सी है
पत्तों में सरसराहट नयी नयी सी है
शायद वोह आये हैं !

दिल में बजता है जलतरंग
कलियाँ भी लहरा उठी हैं
छलकने लगे हैं नदियों के किनारे
शायद वोह मुस्कुराये हैं !

उड़ बैठा है काली पर भंवरा
शमा से परवाना टकराया है
लिपटी बेल गिरी है पेड़ से
शायद वोह घबराये हैं !

जा छुपा है चाँद बदली में
किरणों ने भी आँचल ओढ़ा है
सिमटने लगी हैं पत्तियां अपने आप में
शायद वोह शर्माए हैं !

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