मेरी गुज़ारिश

ठंडी हवा यूँ निकली है मेरे गाल को सहलाकर
महकती साँसों की सिसकी ज्यूँ निकाली थी उसने,
हल्का सा दबाव मेरे सीने पे वैसा ही है
धड़कन तेज़ तेज़ ज्यूँ चलीं थी उसकी !

गले में मेरे सिहर कर बंधी है जो बेल फूलों की
घेर कर सारा जहाँ ज्यूँ डाली थी बाहें उसने,
एक सन्नाटा सा छाया है चुप हैं सभी वैसे ही जैसे
वक़्त ठहर गया था जब पहली मुलाकात थी मेरी उसकी !!

हर रोज़ हर लम्हा हर ज़र्रा जिया हूँ यूँ मैं
रूह में मेरी ज्यूँ घर कर लिया हो उसने,
ले चलो मेरे दोस्त मुझे अब समय हो गया है रुखसती का
सालों अलग रह लिए और यादें बहुत तड़पाती हैं उसकी !!!





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