जीना चाहता हूँ मैं
ज़िन्दगी की किताब के पन्ने सूख कर हुए थे जो ज़र्फ़
भीगी पलकों से गिरा एक कतरा सुर्ख फूलों सा खिला गया !
चाहता हूँ रख दूँ यह पन्ने सामने तुम्हारे नूर ऐ नज़र
कि फिर से वोह दिन जीना चाहता हूँ मैं !!
भीगी पलकों से गिरा एक कतरा सुर्ख फूलों सा खिला गया !
चाहता हूँ रख दूँ यह पन्ने सामने तुम्हारे नूर ऐ नज़र
कि फिर से वोह दिन जीना चाहता हूँ मैं !!
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