खत
अपने दिल की कलम से
दर्द की स्याही में डुबो कर
बेबसी के कागज़ पे बिखराया था
अपनी मजबूरियों का फ़साना
तुमसे की बेवफाई का सबब
और अपनी रुस्वाइयों का ज़िक्र !
ज़माने से परेशान अपनी नाकामयाबियों से झूझते
तुमसे दूर तुम्हारी यादों को संभालते
कभी हँसते और कभी रोते
समेटे थे जिसमे कुछ अलफ़ाज़ कुछ नग्मे
और कुछ यूँ ही बिना लिखे सलाम
जाने क्यों नहीं मिला तुम्हे वोह
खत जो लिखा था हमने !!
दर्द की स्याही में डुबो कर
बेबसी के कागज़ पे बिखराया था
अपनी मजबूरियों का फ़साना
तुमसे की बेवफाई का सबब
और अपनी रुस्वाइयों का ज़िक्र !
ज़माने से परेशान अपनी नाकामयाबियों से झूझते
तुमसे दूर तुम्हारी यादों को संभालते
कभी हँसते और कभी रोते
समेटे थे जिसमे कुछ अलफ़ाज़ कुछ नग्मे
और कुछ यूँ ही बिना लिखे सलाम
जाने क्यों नहीं मिला तुम्हे वोह
खत जो लिखा था हमने !!
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