मेरी बेचैनी


उनसे बिछड के एक मुद्दत हुई 
अब तो अनजाने लगते हैं वो रास्ते भी 
ज़िन्दगी ने सब कुछ दिया हमें 
उनसे ना मिल पाने की कसक भी।

यूँ तो कोई शिकवा नहीं है अपने हालातों से 
मिली मोहब्बत और कामयाबी भी 
वोह दर्द पता नहीं क्यूँ होता है सीने में 
जागते भी सोते हुए भी.

कैसे हो कहाँ हो देखने की आरज़ू है बेपनाह 
अपनी जान की शै पर भी 
आंसूं रोक लेता हूँ दिल को समझा लेता हूँ यही सोच कर  
कि मेरी तरह करार न हो जाये रुसवा तुम्हारा भी।
 
कभी कहीं किसी मोड़ पे ज़िन्दगी के सफ़र में 
मिलो गर हम से भी 
पहचान ज़रूर लेना ग़ैर्रों की इस भीड़ में 
हमें भी हमारी वफ़ा भी।

मेरे दोस्त जहाँ हो खुश तो हो न 
सारी खुदाई  डालता है तुम्हारी झोली में मेरा रकीब भी 
किसी तरह सूरत-ए -हाल  बता पाओ अपने तो 
भर जाएँ दो जहाँ खुशिओं से मेरे भी।

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