अँधेरा

दिल्लगी न समझ ऐ ज़माने इसको
मैंने आशनाई की है अंधेरों से!
आंच से दामन के जलने का खतरा है
वहशत सी हो गयी है रौशनी से!!

अंधेरों में रहने वाले
अँधें नहीं होते!
राहों पर चलते हैं वोह भी
पर उन्हें प्यार होता है ठोकरों से!!

दुनिया के रंग न दिखाओ मुझे
अंधेरों में कोई रंग नहीं होता!
चाहें कितना भी तेज़ रंग क्यों न हो
सरे रंग हो जाते हैं बेरंग अँधेरे में!!

दिन में मुखोटा पेहेननेवाले भी
मुहँ छिपाते हैं रातों में!
अँधेरे में सब छिप जाता है
असलियत दिख जाती है चिरागों से!!

बुझा दो सब चिरागों को
छुपा लो मुझे अँधेरे के आँचल में!
अगर मेरी आह न रुक सकी
छुप सकेंगे मेरे आंसूं तो दुनिया जहाँ से!!

आंच से दामन के जलने का खतरा है
वहशत सी हो गयी है रौशनी से!!

Comments

  1. In complete blackness
    I close my eyes
    waiting to fall.

    A light appears before me
    no,
    from within me.

    ReplyDelete

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