आप को

सुल्झऊंगा उलझी लटों को,
कह रहा व्याकुल ये मन,
क्यूँ सभी पागल हुए है,
देखकर के आप को।

अंतस की गहराईयों तक,
कुञ्ज से वीरानियों तक,
हर जगह हर राह पर,
बस देखता हूँ आप को।

थरथराते होटों पर तुम,
होंठ रख दो फूल से,
भोरों सा ही बस मगन मैं,
पुजता हूँ आप को.

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