पर्दादारी

कुछ तो रहने दो तस्सुवर में मेरे
जिसका ज़िक्र हुआ न हो महफिलों में!
कि अक्सर जज़्बात बेपर्दा होते ही
मज़ाक बन जाया करते हैं !!


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