तन्हा

मैं तन्हा ,
मेरा दिल तन्हा, मेरी ज़िन्दगी तन्हा 
याद किसी की कर गयी 
मेरी शाम तनहा तन्हा  .
अनकही मेरी बातें 
हो गयीं खुद तन्हा 
कसक पैदा कर हो गयीं 
मेरी आहें भी तन्हा 
पलक से जो गिरे अश्क 
वोह भी गिरे तन्हा तन्हा .
मुहब्बत का साज़ छेड़कर 
कर दिया मेरा गीत तन्हा 
कहकहो में हो गयी 
मेरी मुस्कराहट तन्हा 
महफ़िल में बैठकर कह रहा हूँ 
मैं ये शेर तन्हा तन्हा .
कभी गिरा कभी उठा 
रहता आया हूँ मैं तन्हा 
बेवफाइयों से टकरा कर 
हो गयी मेरी वफ़ा तन्हा 
कहीं मेरे साथ हो न जाएँ 
तन्हाईयाँ तन्हा तन्हा .

Comments

  1. बहुत खूब बड़े भाई ......!!! तुम्हारी यह हसीं नज़्म बशीर साहब का अशआर याद दिला गयी......" दरया से सीखी है हमने पानी की पर्दादारी , ऊपर ऊपर हँसते रहना ;गहराई में रो लेना " !!! लिखते रहो....सुनाते भी रहो !!

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