मेरा नाम

देखोगे तो मुझे भी अपने जैसा ही पाओगे, मगर मैं तुम्हारे जैसा नहीं हूँ।
हाँ, मेरे दो हाथ, पाँव और आँखें हैं, पर मेरी इछाओं का केंद्र - मेरा दिल नहीं है।
मेरी भावनाएं जो मेरी झोंपड़ी में शायद दफ़न हैं कहीं, चली आती हैं कभी कभी मेरे खोखले सीने में।
कभी दुःख, कभी क्रोध, कभी लज्जा तो कभी हीनता।
और ऐसा तब ज़रूर होता है जब सामने की कोठी से दूध में मलाई कम होने की आवाज़ आती है
और माँ मेरे हाथ पर सूखी रोटी और नमक रखती है।
हर रोज़ मेरे कदम उस ईमारत की तरफ बढ़ जाते हैं
जहाँ हर रोज़ सेकड़ों बच्चे बस्ता टांगे कारों से उतरते हैं।
पर जाने क्यों वह चौकीदार मुझे अन्दर नहीं जाने देता
जहाँ विद्या सबका अधिकार है का नारा लगता है।
मुझे वो चोकोलेट भी लुभाते हैं जो बच्चे खेलते हुए खाते हैं
पर मेरा बापू उनके पापा की तरह चोकोलेट नहीं लाता है।
वो तो खुद पी कर आता है।
मुझे माँ पर भी बड़ा गुस्सा आता है जब वो मुझे एक ही पुरानी कमीज़ पहनने को देती है
फिर माँ की फटी साड़ी देख कर चुप हो जाता हूँ और मुंह फेर कर रो लेता हूँ।
जिस दिन सामने वाली कोठी से बेबी विदेश घुमने गयी थी मैं बहुत रोया था
क्योंकि उसी दिन मेरी मुन्नी बेहेन बिना दवा के मर गयी थी।
झोंपड़ी और कोठी का यह फरक जब मैंने सामने कोठी के राजू से पूछा
तो उसने कहा की यह फरक इसलिए है क्योंकि वो राजू है और मैं गंगू हूँ।
शायद यह मेरा नाम ही है जिस की वजह से मैं गरीब हूँ
वरना मैं भी तो इंसान का बेटा हूँ।
काश मेरा नाम भी राजेश, मोहन या अजय होता
तो मेरी बेहेन यूँ न मरती, मेरी माँ फटी साड़ी न पहेनती
मेरा बाप ईंटें न ढ़ोता और मैं स्कूल जा पाता।
कम से कम इतना तो होता कि मेरे बाप की लाश को दारु के ठेके पर न जला कर
मुझे उसे अग्नि देने का मौका दिया जाता॥

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