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Showing posts from July, 2010

सूखा पेड़

लगाया था जिस माली ने वोह भी, छोड़ गया इस दुनिया में अकेला मुझे! किस किस को मनाऊँ मैं, मुझसे तो ज़िन्दगी भी रूठी है!! कच्चे पौधे से तना बनने तक, साथ दिया है सिर्फ मिट्टी ने मेरा! वरना तो इस मतलबपरसत दुनियाँ में, लोगों की हमदर्दी भी झूठी है!! दोस्तों की बेवफाई, अपनों की बेरुखी क्या सुनाएँ! यहाँ तो ऐसे मौसम आये हैं, जब अपनी पत्तियों ने ड़ाल छोड़ी है!! जब भी लिया सहारा दूसरों का, अपनी ही मिट्टी ने झिंझोड़ा है मेरी जड़ों को! दूसरों का सहारा तो क्या मिलता, मेरी जड़ें ही हुई ढीली हैं!! अपनी किस्मत ही कुछ ऐसी है, तना काट देते तो चैन हो जाता! पर अच्छाई का नाम लेकर दुनियाँ ने, कभी यह तो कभी वो ड़ाल काटी है!! कहते हैं बरसात के आने से, कटी हुई ड़ाल फिर से बढ़ जाती है! किस्मत की मार तो देखिये, यहाँ तो बरसात में ही ड़ाल टूटी है!! जन्म से लेकर आज तक, कभी फला ही नहीं हूँ मैं! जब कभी फलना चाहा, किस्मत की मार पड़ी है!! सुखा पेड़ किसी काम का नहीं, बोझ होता है इस धरती पर! देखना तो अब यह है कि, मुझ पर बिजली कब गिरती है!!

शब्द और ख़ामोशी

जब भी करनी हुई कोई बात मैं खामोश ही रह गया! जब भी खामोश रहना चाहा दिल की परतें उतर गयीं!! होंठ फरफरा कर भी कुछ कह न सके! आंखें चुप रह करके भी बहुत कुछ बोल गयीं!! जो कहा वोह सुना नहीं जो सुना वोह कहा नहीं! इस कहने सुनने में शब्द खो गए ख़ामोशी दब गयी!! आँखों ने आँखों से कह दिया खामोश रहो शब्दों को डूबने दो! शब्द ख़ामोशी में तेरते रहे शब्दों की ख़ामोशी दिल में उतर गयी!! शब्दों और ख़ामोशी के बीच फासला कुछ इतना था कि शब्द और ख़ामोशी में मुझे कोई फर्क मालूम न हुआ!!

आप को

सुल्झऊंगा उलझी लटों को, कह रहा व्याकुल ये मन, क्यूँ सभी पागल हुए है, देखकर के आप को। अंतस की गहराईयों तक, कुञ्ज से वीरानियों तक, हर जगह हर राह पर, बस देखता हूँ आप को। थरथराते होटों पर तुम, होंठ रख दो फूल से, भोरों सा ही बस मगन मैं, पुजता हूँ आप को.