कसम
इस दुनिया में बहुत नफरत और शुबहा-शिकायत है, हर किसी को हर किसी से कोई मतलब कोई उम्मीद है। न करेंगे कोई शिकवा न ही गिला रखेंगे कोई, जो मिला जितना मिला उतना जश्न ए इश्क मनायेंगे।। रकीब को मेरे मेरा सलाम कहना, मुझे नहीं चाहिए कुछ भी यह बता देना। रहो तुम खुश आबाद रहो दिल शाद रहो, एक मुस्कान मेरी तुम्हारे होंटों पे ज़रूर खिलाएंगे।। चलो आज फिर से कसम खाएं कि फिर कभी न कोई कसम खायेंगे, बस हम प्यार करेंगे न कि वादे और रस्मे निभाएंगे। चाहा है गर तुम्हे अपने दिल ओ जान से मेरे सनम, तो अगले जनम ज़रूर एक दुसरे को हम पाएंगे।।