यह नज़दीकियां
आँसुओं से नहीं लिखी जाती तक़दीरें ख्यालों से नहीं होती पूरी तदबीरें! हसरतों को न जाने कितने पर लगा कर मिटाईं हैं मैंने तेरे मेरे बीच की सरहदें !! तू आज किसी और की आँखों का ख्वाब सही अश्क़ सदा से है तू मेरी ही आँखों का! न जाने कितने बरस बीते हैं तेरे दीदार को अक्स तेरा अब भी हमसाया है मेरी रूह का !! बना दें जितनी भी दूरियां तुमसे यह दुनिया खींच दें कितनी भी लकीरें नक्शों पर ! कैसे जुदा कर सकेंगे तुम्हे मुझसे जब साँसे लेता हूँ मैं तेरी दिल की धड़कनो पर !! मेरे जज़्बात मेरी हसरतें मेरी गुस्ताख बेबाकियाँ अमानत हैं तुम्हारी, जो हूँ समेटे अपने आगोश में ! कहीँ किसी शहर किसी मकान में तुम ने भी फैला रखी होगी खामोशियाँ मेरी अपने आँगन में !!